Sunday, December 20, 2009

राहुल गाँधी कांग्रेस के महासचिव हैं। लेकिन उनका यह परिचय अधूरा है। फिलहाल वे उस परिवार के एक मात्र पुरूष उत्तराधिकारी हैं जो इस देश की सत्ता के सूत्र संभाले हुए है। इसलिए उनकी प्रत्येक घोषणा को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। पिछले दिनों वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में गए थे। इस विश्वविद्यालय की महत्ता इसलिए भी बढ़ गई है कि सरकार इस को मॉडल मान कर इसकी शाखाएं देश भर में स्थापित कर रही है। और इस काम के लिए करोड़ों रूपये के बजट का हिसाब-किताब लगाया जा रहा है। देश के विभाजन में, उसके सैधान्तिक पक्ष को पुष्ट करने में, इस विश्वविद्यालय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। राहुल गांधी इसी विश्वविद्यालय में मुसलमानों की नई पीढ़ी के साथ देश के भविष्य पर चिन्तन कर रहे थे। वहाँ उन्होंने यह घोषणा की कि इस देश का प्रधानमंत्री मुसलमान भी बन सकता है। उनकी यह घोषणा कांग्रेस के भविष्य की रणनीति का संकेत भी देती है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इससे पहले ही यह घोषणा कर चुके हैं कि इस देश के संसाधनों पर पहला हक मुसलमानों का है।


इससे पहले प्रधानमंत्री अफगानिस्तान में जाकर बाबर की कब्र पर सिजदा भी कर आये हैं। राहुल गांधी की यह घोषणा और मनमोहन सिंह का संसाधनों पर हक के बारे में बयान कांग्रेस की भविष्य की दिशा तय करने का संकेत देता है। अपनी इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए केन्द्र सरकार ने दो आयोगों की नियुक्ति भी की थी। इनमें से एक था राजेन्द्र सच्चर आयोग और दूसरा था न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्रा आयोग। सच्चर आयोग ने अपने दिये हुए काम को बखूबी अंजाम दिया। उसने सिफारिशें की कि मुसलमानों को मजहब के आधार पर सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाना चाहिए। सच्चर तो अपनी सीमा से भी आगे निकल गये थे उन्होंने भारतीय सेना तक में मुसलमानों की गिनती प्रारम्भ कर दी थी और सेना से जवाब तलब करना शुरू कर दिया था, कि वहां कितने मुसलमान है? यह तो भला हो सेनाध्यक्षों का कि उन्होंने सच्चर को आगे बढ़ने से रोकते हुए कहा कि भारतीय सेना में भारतीय सैनिक हैं मुसलमान या किसी अन्य मजहब से उनकी पहचान नहीं होती। लेकिन सच्चर को तो सरकार ने भारतीय पहचान छोड़कर मुसलमान की मजहबी पहचान पुख्ता करने का काम दिया हुआ था।

उसके बाद इसी योजना को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने रंगनाथन मिश्रा आयोग की स्थापना की। कुछ लोगों को ऐसा लगता था कि अनुसूचित जाति के अधिकांश लोग मतांतरण के माध्यम से इसी लिए मुसलमान या इसाई नहीं बन पाते क्योंकि इस्लाम या चर्च की शरण में चले जाने के बाद उनको संविधान द्वारा मिला आरक्षण समाप्त हो जाता है। संविधान यह मान कर चलता है कि जाति प्रथा हिन्दू समाज का अंग है। इस्लाम अथवा इसाईयत में जाति विभाजन अथवा जाति प्रथा नहीं है। मतांतरण को प्रोत्साहित करने वाले मुल्ला अथवा पादरी भी अनुसूचित जाति के लोगों को यही कह कर आकर्षित करते हैं कि जब तक आप हिन्दू समाज में रहोगे तब तक जाति विभाजन से दबे रहोगे। इसलिए जाति से मुक्ति पाने के लिए इस्लाम अथवा चर्च की शरण में आ जाओ। अब मुल्लाओं और पादरियों को यह लगता है कि जब तक हिन्दू समाज में अनुसूचित जाति के लोगों को आरक्षण मिलता रहेगा तब तक वे मुसलमान या इसाई नहीं बनेंगे। इसलिए उन्होंने सरकार से प्रार्थना की कि मुसलमान अथवा इसाई बने मतांतरित लोगों को भी जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए। परन्तु उनके दुर्भाग्य से न्यायपालिका ने उसमें अड़ंगा लगा दिया। उस अड़ंगे को दूर करने के लिए भारत सरकार ने रंगनाथमिश्रा आयोग की स्थापना की। इस आयोग ने अपने दिये हुए कार्य को पूरा करते हुए यह सिफारिश कर दी है कि मतांतरित लोगों को भी, जो मुसलमान अथवा इसाई हो गये हैं, जाति के आधार पर आरक्षण दिया जाना चाहिए। सरकार इस आयोग की सिफारिशों को भी लागू करने की दिशा में तत्पर दिखाई दे रही है। लेकिन इस देश को मुस्लिम बनाना या उसे मुसलमानों के हाथों सौंप देने का अभियान अनेक पक्षिय है। एक तरफ कानूनी और संवैधानिक दावपेच हैं तो दूसरी तरफ धरातल पर तेजी से हो रहा कार्य है।

लव-जेहाद उनमे से एक पक्ष है। केरल उच्च न्यायलय ने संकेत दिया है कि केरल में पिछले कुछ वर्षों में तीन हजार से लेकर चार हजार हिन्दू लड़कियों को प्रेम-जाल में फांस कर इस्लाम में मतांतरित किया गया है। लेकिन इस बड़े अभियान में यदि एक पक्ष लव-जिहाद है तो दूसरा पक्ष आतंकवाद है। इस्लामी आतंकवाद ने इस देश के अनेक हिस्सों में अपनी जड़े जमा ली हैं इसी के बलबूते उसने कश्मीर प्रांत से हिन्दुओं का सफाया कर दिया है। असम और बंगाल के अनेक जिले बंग्लादेशियों को अवैध गुसपैठ से मुस्लिम बहुल हो चुके हैं। न्यायपालिका की बार-बार की फटकार के बावजूद केन्द्र सरकार की रूची वोट बैंक को देखते हुए इन अवैध बंग्लादेशियों को भारत से निकालने की कम है उन्हें प्रश्रय देने की ज्यादा।

अब रही-सही कसर लिब्राहन आयोग ने पूरी कर दी है। श्री मनमोहन सिंह लिब्राहन ने अपनी रपट में मुस्लिम समाज को धिक्कारा है। कि जब विवादित ढांचे को गिराने की तैयारियां हो रही थी तो मुस्लिम समाज क्या कर रहा था? लिब्राहन का कहना है कि मुसलमानों के संगठनों ने अपने कर्तव्य को पूरा नहीं किया। लिब्राहन के इन निष्कर्शों का क्या छिपा हुआ अर्थ है? क्या वे मुस्लिम समाज को लड़ने के लिए ललकार रहे हैं? क्या यह एक नए गृह युद्व के संकेत हैं? विभाजन से पूर्व मुस्लिम लीग जो भूमिका निभा रही थी क्या उसी में फिर से उतर आने के लिए मुसलमानों को ललकारा जा रहा है? यह पश्न गहरी जांच-पड़ताल की आशा रखते हैं। राहुल गाँधी के मुस्लिम प्रधानमंत्री के बयान को इसी पृष्ठ भूमि में जांचना परखना होगा। 1947 से पूर्व मुहम्मद अली जिन्ना और ब्रिटिश सरकार एक स्वर में कह रही थी कि भारत वर्ष में मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है। जिन्ना ने प्रतिकार रूप में उसका रास्ता अलग देश के रूप में चुना। दुर्भाग्य से 21 वीं शताब्दी में भी कांग्रेस सरकार और अलगाववादी मुस्लिम संगठन वही भाषा बोल रहे हैं। क्या यह एक नये विभाजन की तैयारी है या फिर इस देश को ही मुस्लिम देश बनाने की एक और साजिश?

4 comments:

  1. जैसे क्राइम की दुनिया में कहा जाता है , और हिन्दी फिल्मो के भरोसे हम सब जानते हैं कि ..हत्यारा एक बार सबूत मिटाने के लिये घटना स्थल पर जरूर लौटता है , या कुच अच्छा सा उदाहरण ले तो हम जानते हैं कि प्रेमी जोड़ा फर्स्ट मीटींग पाइंट पर जब तब फिर फिर मिलता रहता है ...कुछ उसी तरह ब्लागर अपनी पोस्ट पर एक बार जरूर फिर से आता है , टिप्पणियां देखने के लिये ....तो मैं भी यहां हूं .. टिप्पणी करके लेखक का मनोबल बढ़ाने का सारस्वत कार्य जरूरी है , स्वागत है ब्लाग की दुनिया में

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  2. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी टिप्पणियां दें

    कृपया वर्ड-वेरिफिकेशन हटा लीजिये
    वर्ड वेरीफिकेशन हटाने के लिए:
    डैशबोर्ड>सेटिंग्स>कमेन्टस>Show word verification for comments?>
    इसमें ’नो’ का विकल्प चुन लें..बस हो गया..कितना सरल है न हटाना
    और उतना ही मुश्किल-इसे भरना!! यकीन मानिये

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  3. भाई ये मुल्क किसी एक की बपौती नही नही है

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  4. अच्छी रचना बधाई। ब्लॉग जगत में स्वागत।

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