Sunday, January 17, 2010

ज्योति बसु को सालती रही माकपा की महाभूल


नई दिल्ली। देश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड बनाने वाले ज्योति बसु 1996 में प्रधानमंत्री बनने के भी एकदम करीब आ गए थे, लेकिन तब उनकी पार्टी माकपा ने ऐसा करने के खिलाफ फैसला किया। इस वरिष्ठ नेता ने इसे एक 'ऐतिहासिक महा-भूल' बताते हुए कहा था कि इतिहास ऐसे अवसर दोहराता नहीं और उनकी बात सच साबित हुई। देश में 1996 में हुए लोकसभा चुनाव के खंडित जनादेश में कांग्रेस सत्ता में नहीं लौट सकी और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में नहीं थी। उन हालात में तमिलनाडु हाऊस में प्रधानमंत्री का उम्मीदवार चुनने के लिए गैर-कांग्रेसी वरिष्ठ नेताओं की महत्वपूर्ण बैठक हुई। इस महत्वपूर्ण बैठक में विश्वनाथ प्रताप सिंह का नाम सामने आया, लेकिन उन्होंने उसे ठुकरा कर संयुक्त मोर्चा सरकार के प्रधानमंत्री के रूप में ज्योति बसु का नाम सुझाया। इस प्रस्ताव को गंभीरता से लेते हुए माकपा के तत्कालीन महासचिव हरकिशन सिंह सुरजीत पार्टी के पास गए। माकपा पोलित ब्यूरो में इस पर चर्चा हुई और गहरे मतभेद उभरने पर मामला केंद्रीय समिति के सुपुर्द कर दिया गया। कट्टरपंथी वाम नेताओं की बहुमत वाली केंद्रीय समिति ने ज्योति बसु को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश को यह कह कर नामंजूर कर दिया कि पार्टी अभी इस हालत में नहीं है कि संयुक्त मोर्चा सरकार में वह अपनी नीतियों को लागू करवा पाए। कामरेड सुरजीत ने जब संयुक्त मोर्चा के नेताओं को पार्टी के इस फैसले से अवगत कराया तो वीपी सिंह ने एक बार फिर माकपा और उसकी केंद्रीय समिति से उसके उस 'दुर्भाग्यपूर्ण' निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया। वीपी सिंह के आग्रह पर तमिलनाडु हाऊस से ही सुरजीत ने प्रकाश कारत को फोन कर कहा कि आपातकालीन बैठक के लिए वह केंद्रीय समिति के नेताओं को दिल्ली में ही बने रहने को कहें। लेकिन केंद्रीय समिति ने पेशकश को ठुकरा दिया। बसु ने देश में पहले कम्युनिस्ट नेता को देश का प्रधानमंत्री बनने देने के अवसर को हाथ से निकल जाने के पार्टी के इस निर्णय पर लंबे समय तक चुप्पी साधे रखने के बाद इसे 'ऐतिहासिक महा-भूल' बताया था। कुछ समय बाद बसु की इस टिप्पणी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने फिर दोहराया कि हां, मैं अभी भी मानता हूं कि वह ऐतिहासिक महा-भूल थी, क्योंकि ऐसे अवसर दोबारा नहीं आते। इतिहास ऐसे अवसर दोहराता नहीं है। उन्होंने कहा था कि संयुक्त मोर्चा ने यह जानते हुए भी कि वह मा‌र्क्सवादी और कम्युनिस्ट हैं, उन्हें प्रधानमंत्री बनने की पेशकश इसलिए की थी कि प्रधानमंत्री पद के लिए उन्हें उस समय कोई अन्य व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था। बसु के निधन पर माकपा पोलित ब्यूरो की आज यहां हुई शोक बैठक में 1996 की 'महा-भूल' को भी याद किया गया। बैठक के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता सीताराम येचूरी ने संवाददाताओं से कहा कि एक समय जब प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम चला तो उनकी राय थी कि प्रधानमंत्री पद स्वीकार किया जाए, लेकिन पार्टी की राय अलग थी। ज्योति बसु ने पार्टी की राय को मानकर वामपंथी और पार्टी अनुशासन की मिसाल कायम की। माकपा द्वारा बसु को प्रधानमंत्री बनाने की पेशकश ठुकरा दिए जाने पर जी के मूपनार और जनता दल नेता तथा कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एच डी देवेगौड़ा का नाम आया। इस दौड़ में देवेगौड़ा ने बाजी मार ली। उस समय जनता दल के ही रामकृष्ण हेगड़े का नाम भी संभावित प्रधानमंत्री के नामों में चला लेकिन वह गति नहीं बना पाया। स्वयं ज्योति बसु ने देवेगौड़ा का नाम आगे बढ़ाते हुए सुझाया कि मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में उनके अनुभवों का देखते हुए उन्हें [देवेगौड़ा] प्रधानमंत्री बनाया जाए। उस समय बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद जनता दल के अध्यक्ष थे। उन्होंने तुरंत प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

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